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Friday, August 28, 2020

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम

 



हज़रत इदरीस अलैहि सलाम » Qasas ul Anbiya: Part 5

Idrees Alaihis Salam: Qasas-ul-Ambiya Series in Hindi: Post 5

۞ बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम ۞

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम का ज़िक्र कुरआन में सिर्फ़ दो जगह आया है,  सूरः मरयम में और सूर: अंबिया में।

और याद करो कुरआन में इदरीस को, बिला शुबहा वह सच्चे नबी थे और बुलन्द किया है हमने उनका मुकाम। [मरयम १९:५६]

और इस्माईल और इदरीस और ज़ुलकिफ़्ल, इनमें से हर एक था सब्र करने वाला। [अबिया २१:८५]

नाम-नसंब और ज़माना

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम के नाम-नसब और जमाने के बारे में तारीख़ लिखने वालों का सख्त इख़्तेलाफ है और तमाम इख्तिलाफ़ी वजहों को सामने रखने के बाद भी कोई आख़िरी या तरजीह देने वाली राय क़ायम नहीं की जा सकती। वजह यह है कि कुरआन करीम ने तो रुशद व हिदायत के अपने मकसद के पेशे नज़र, तारीख़ी बहस से जुदा होकर सिर्फ़ उनकी नुबूवत के रुतबे की बुलन्दी और उनकी ऊंची सिफ़तो का जिक्र किया है ओर इसी तरह हदीस की रिवायतें भी इससे आगे नहीं जातीं। इसलिए इस सिलसिले में जो कुछ भी हैं, वे इसराईली रिवायतें हैं और वे भी आपसी टकराव और इख़्तेलाफ़ से भरी हुई हैं। (इसीलिए थोड़े से लिखने के पेशेनज़र इन दूर-दराज़ से लाई गई बहसों से बचने की कोशिश की जा रही है)

एक जमाअत का यह ख्याल है कि हज़रत इदरीस अलैहि सलाम बाबिल में पैदा हुए और वहीं पले-वढ़े। उम्र के शुरूआती दिनों में उन्होंने हज़रत शीस बिन आदम अलैहि सलाम से इल्म हासिल किया। बहरहाल जब इदरीस अलैहि सलाम ख़ुद से सोचने-समझने वी उम्र को पहुंचे लो अल्लाह ने उनको नुवूबत से सरफ़राज़ फ़रमाया तब उन्हाने शरीरों (बदमाशों) और फ़सादियों के लिए राहे हिदायत की तब्लीग शुरू की, पर फ़सादियों ने उनकी एक बात न सुनी और हज़रत आदम व शीश अलैहि सलाम की शरीयत के मुखालिफ ही रहे, अलबत्ता एक छोटी-सी जमाअत ज़रूर मुसुलमान हो गई।

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम ने जब यह रंग देखा तो वहां से हिजरत का इरादा किया और अपने मानने वालों को हिजरत कर जाने के लिए कहा।इदरीस अलैहि सलाम की पैरवी करने वालों ने जब यह सुना तो उनको वतन का छोड़ना बहुत गसं गुज़रा और कहने लगे कि बाबिल जैसा वतन हमको कहां नसीब हो सकता है? हजरत इदरीस अलैहि सलाम ने तसल्ली देते हुए फ़रमाया कि अगर तुम यह तकलीफ अल्लाह के रास्ते में उठाते हो, तो उसकी रहमत बहुत फैली हुई है, उसका अच्छा बदला ज़रूर देगा, पस हिम्मत न हारों और अल्लाह के हुक्म के आगे सरे नियाज़ झुका दो।

मुसलमानों की रज़ामंदी के बाद हज़रत इदरीस और उनकी जमाअत मिस्र की तरफ़ हिजरत कर गई और नील के किनारे एक अच्छी जगह चुनकर के सकूनत अपना ली। हज़रत इदरीस अलैहि सलाम और उनकी पैरवी करने वाली जमाअत ने पैगामे इलाही और भलाई का हुक्म देने और बुराई से रोकने वाले का फर्ज अंजाम देना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि उनके ज़माने में बहत्तर ७२ जुबानें बोली जाती थीं और अल्लाह की अता व बख्शीश से वह वक़्त की तमाम जुबानों को जानते थे और हर एक जमाअत को उसकी ज़बान में तब्लीग़ फ़रमाया करते थे। एक रिवायत के एतबार से हजरत इदरीस अलैहि सलाम पहले आदमी हैं जिन्होंने कलम क इस्तेमाल किया।

हज़रत इदरीस की ख़ास बातें

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम ने दीने इलाही के पैग़ाम के अलावा तमद्दुनी रियासत और शहरी ज़िंदगी, तमद्दुनी तौर-तरीक़ों की तालीम व तलक़ीन की और उनके ट्रेंड तालिबे इल्मों ने कम व बेश दो सौ बस्तियां आबाद कीं। हज़रत इृदरीस अलैहि सलाम ने इन तलबा को दूसरे इल्मों की भी तालीम की, जिसमें इल्मे हिक्मत भी शामिल हैं। हज़रत इदरीस अलैहि सलाम पहली हस्ती हैं जिन्होंने हिक्मत के इल्म की शुरवात की, इसलिए कि अल्लाह तआला ने उनको अफ़लाक और उनकी तर्कीब और उनके जमा होने और अलग होने के नुक्तों और उनके आपसी कशिश के राज़ों की तालीम दी और उनको अदद ब हिसाब के इल्म का आलिम बनाया और अगर ख़ुदा के उस पैगम्बर के ज़रिए से इल्म सामने न आते, तो इन्सानी तबीयतों की वहां तक पहुंच मुश्किल थी। उन्होंने अलग-अलग ज़ातों और गिरोहों के लिए उनके मुनासिबे हाल क़ायदे क़ानून मुक़र्रर किए और पूरी दुनिया को चार हिस्सों में बांट कर हर चौथाई के लिए एक हाकिम मुकर्रर किया जो ज़मीन के उस हिस्से की सियासत और बादशाही का ज़िम्मेदार करार पाया और इन चार्रो के लिए ज़रूरी क़रार दिया कि तमाम क़ानूनों से बढ़-चढ़कर शरीयत का वह क़ानून रहेगा, जिसकी तालीम अल्लाह की वह्य के ज़रिए मैंने तुमको दी है।

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम की तालीम का खुलासा

अल्लाह की हस्ती और उसकी तौहीद पर ईमान लाना सिर्फ कायनात पैदा करने वाले की परस्तिश करना, आख़िरत के अज़ाब से बचाने के लिए भले अमलों को ढाल बनाना, दुनिया से बे-नियाज़ी, तमाम मामलों में अदल व इंसाफ़ को सामने रखना, मुंकर्रर किए हुए तरीकों पर अल्लाह की इबादत करना, अय्यामे बीज के रोज़े रखना, इस्लाम के दूश्मनों से जिहाद करना, ज़कात अदा करना, पाकी-सफ़ाई के साथ रहना, ख़ास तौर से जनाबत, कुत्ते और सूअर से बचना, हर नशीली चीज़ों से परहेज़ करना।

बाद में आने वाले नंबियों के बारे में बशारत

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम ने अपनी उम्मत को यह भी बताया कि मेरी तरह इस दुनिया की दीनी व दुनियावी इस्लाह के लिए बहुत से नबी तशरीफ़ लाएंगे और उनकी नुमायां ख़ास बातें ये होंगी।

वे हर एक बुरी बात से दूर और पाक होंगे। तारीफ़ के काबिल और फ़ज़ाइल में कामिल होंगे। ज़मीन व आसमान के हालात को और उन मामलों को कि जिनमें कायनात के लिए शिफ़ा है या मरज, वहीह इलाही के ज़रिए इस तरह जानते होंगे कि कोई मांगने वाला भूखा-प्यासा न रहेगा। वे दुआओं को देने वाले होंगे। उनके मज़हब की दावत का खुलासा कायनात की इस्लाह होगा।

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम की ज़मीनी खिलाफत

जब हज़रत इदरीस अलैहि सलाम अल्लाह की ज़मीन के मालिक बना दिए गए, तो उन्होंने इल्म व अमल के एतबार से अल्लाह की मख्लूख को तीन तब्को में बांट दिया। काहिन, बादशाह, रियाया (प्रजा) और तर्तीब के एतबार से उनके दर्जे तय किए। ‘काहिन’ सबसे पहला और ऊंचा दर्जा करार पाया, इसलिए कि वह अल्लाह तआला के सामने अपने नफ़्स के अलावा बादशाह और रियाया के मामलों में भी जवाबदेह है। ‘बादशाह’ का दूसरा दर्जा रखा गया इसलिए कि वह नफ़्स और राज्य के मामलों के बारे में जवाबदेह है और ‘रियाया’ सिर्फ़ अपने नफ़्स के लिए जवाबदेह है, इसलिए वह तीसरे तबके में शामिल है लेकिन ये तबके ज़िम्मेदारियों के एतबार से थे, नस्ल व ख़ानदान के इख़्तियारो के एतबार से नहीं। हजरत इदरीस अलैहि सलाम ‘अल्लाह तक जाने’ तक शरीयत और सियासत के इन्हीं कानूनों की तब्लीग फरमाते रहे।

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम की नसीहतें

हजरत इदरीस अलैहि सलाम की बहुत-सी नसीहतें और आदाब और अखलाख के जुमले मशहूर हैं, जो अलग-अलग जुबानों में कहावत की शक्ल में इस्तमाल किये जाते है। उनमें से कुछ नीचे दिए जाते है:

१. अल्लाह की बेपनाह नेमतों का शुक्रिया इंसानी ताक़त से बाहर है।

२. दुनिया की भलाई ‘हसरत’ है और बुराई ‘नदामत’।

३. अल्लाह की याद और अमले सालेह के लिए ख़ुलूसे नीयत शर्त है।

४. न झूठी क़स्में खाओ, न अल्लाह तआला के नाम को कस्मो के लिए तख्ता-ए-मश्क़ बनाओ और न झूठों को कस्मे खानें पर आमादा करो, क्योंकि ऐसा करने से तुम भी गुनाह में शरीक हो जाओगे।

५. अपने बादशाहों की (जो कि पैग़म्बर की तरफ़ से शरीअत के हुक्मों के नाफ़िज़ करने के लिए मुकरर किए जाते हैं) इताअत करो और अपने बड़ों के सामने पस्त रहों और हर वक़्त अल्लाह की तारीफ़ में अपनी जुबान को तर रखो।

६. हिकमत रूह की ज़िंदगी है।

७. दूसरों की ख़ुश ऐशी पर हसंद न करो, इसलिए कि उनकी यह मस्रूर ज़िंदगी कुछ दिनों की है।

नोट: कुछ तहक़ीक़ करने वालों और तज़्किरा लिखने वालों ने हज़रत इदरीस अलैहि सलाम और यूनानी फ़र्ज़ी अफ़्सानवी (Greek Mythology) के (Hermes) हरमज में मुताबकत पैदा करने की कोशिश की है, जो सही नहीं है। हरमज़ (Hermes) को उन फ़र्जी अफ़्सानों में हिक्मत व फ़साहत का देवता कहा जाता है। रूमी उसको ‘अतारद’ कहते हैं।

कायनात की पैदाइश और पहला इंसान » Qasas ul Anbiya: Part 1

 

कायनात की पैदाइश और पहला इंसान » Qasas ul Anbiya: Part 1

۞ बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम ۞

तम्हीद

………. कुरआन पाक इन तारीख़ी वाक़ियों को सिर्फ़ इसलिए नहीं बयान करता कि वे वाकिये हैं, जिनका एक तारीख़ में लिखा होना ज़रूरी है, बल्कि इसका एक ही मक़्सद है, वह यह कि वह इन वाक्रियों से पैदा होने वाले नतीजों से इंसान की हिदायत व रहनुमाई के लिए नसीहत और इबरत बनाए और इंसानी अक़्ल व जज़्वांत से अपील करें कि वे फ़ितरत के क़ानूनों के सांचे में ढले हुए इन तारीखी नत्तीजों से सबक़ हासिल करें।

………. और ईमान लाएं कि अल्लाह की हस्ती एक इंकार न की जा सकने वाली हक्रीकत है और कुदरत का यही हाथ ईस कायनात पर कारफ़रमा है और इसी मज़हब के हुक्मों की पैरवी में फ़लाह व नजात ओर हर किस्म की तरक़्क़ी का राज़ छिपा हुआ है, जिसका नाम ‘फ़ितरत का मजहब’ या इस्लाम हैं।

  • कससुल कुरआन’ से लिया गया

पहला इंसान

………. हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के बारे में कुरआन मजीद ने जो हक़ीक़तैं बयान की हैं, उनके तफ़सीली तज़्किरे से पहले यह साफ़ हो जाना ज़रूरी है कि इंसान के आलमे वजूद में आने का मसअला आज इल्मी निगाह से बहस का एक नया दरवाज़ा खोलता है, यानी Evolution (विकास) का यह दावा है कि मौजूदा इंसान अपनी शुरूआती पैदाइश ही से इंसान पैदा नहीं हुआ, बल्कि मौजूद कायनात में उसने बहुत से दर्जे तय करके मौजूदा इंसानी शक्ल हासिल की इसलिए कि ज़िंदगी की शुरूआत ने कंकड़-पत्थर, पेड़-पीधों की अलग-अलग शक्लें अख्तियार करके हज़ारों-लाखों वर्ष बाद एक-एक दर्जा तरक़्क़ी करते-करते पहले लबूना (पानी की जोंक) का जामा पहना और फिर ऐसी ही लम्बी मुद्दत के बाद जानदारों के अलग-अलग छोटे-बड़े तब॒कों से गुज़र कर मौजूदा इंसान की शक्ल अपनाई।

………. और मज़हब यह कहता है कि.कायनात के पैदा करने वाले ने पहला इंसान हज़रत आदम की शक्ल ही में पैदा किया और फिर उसकी तरह एक हमजिंस मख्लूख हव्वा को वजूद देकर दुनिया में इंसानी नस्ल का सिलसिला क़ायम किया और यही वह इंसान है जिसको कायनात के पैदा करने वाले ने तमाम पैदा की हुईं चीज़ों पर बरतरी और बुजुर्गी अता फ़रमाई और अल्लाह की अमानत का भारी बोझ उसके सुपुर्द फ़रमाया और कुल कायनात को उसके हाथ में सधा कर जमींन के ख़लीफ़ा और नायाब होने का शरफ़ उसी को बख्शा।

❝ बेशक, हमने इंसानो को बेहतरीन अन्दाज़ से बनाया है। [अत-तीन 95.4]

❝ बेशक हमने आदम की नस्ल को तमाम कायनात पर बुजुर्गी और बरतरी बख्शी [क़ुरान 17]

❝ मैं (अपना) एक नाएब ज़मीन में बनानेवाला हूँ। [अल-बक्रर: 2:30]

❝ हमने अमानत के बोझ को आसमानों और ज़मीन पर पेश किया तो उन्होंने (यानी कुल कायनात ने) अल्लाह की अमानत के बोझ को उठाने से इंकार कर दिया, और इससे डर गए और इंसान ने उस भारी बोझ को उठा लिया।’ [अल-अहंज़ाब 33:72]

………. अब सांचने की बात यह है कि Evolution और धर्म के बीच इस ख़ास मसअले में इल्मी तज़ाद (विरोधाभास) है या ततवीक़ (मेल) की गुंजाइश निकल सकती है, ख़ास तौर से जबकि इल्म आर तजुर्बे ने यह सच्चाई खोल कर रख दी है कि दीनी और मज़हबी हक़ीकतों और इल्म के दर्मियान किसी मी मामले में टकराव नहीं है। अगर ज़ाहिरी सत्तह पर कहीं ऐसा नज़र भी आता है तो वह इल्म की हकीकतों के छुपे होने की वजह से नज़र आता है।

………. क्योंकि बार-बार यह देखा गया है कि जब भी इल्म की छुपी हक़ीक़तों पर से परदा उठा, तो उसी वक्‍त तज़ाद भी जाता रहा और वहीं हक़ीक़त निखर कर सामने आ गई जो अल्लाह की वह्य के ज़रिए ज़ाहिर हो चुकी थी। दूसरे लफ़्ज़ों में कह दीजीए कि इल्म और मज़ह़ब के दर्मियान अगर किसी वक़्त भी तज़ाद नज़र आया, तो नत्तीजे के तौर पर इल्म को अपनी जगह छोड़नी पड़ी और अल्लाह की वह्य का फ़ैसला अपमी जगह अटल रहा।

………. इस बुनियाद पर इस जगह भी कुदरत्ती तौर पर यह सवाल सामने आ जाता है की इस ख़ास मसअले में हक्रीक़ते हाल क्या है और किस तरह है? जवाब यह है कि इस मामले में भी इल्म और मज़हब के दर्मियान कोई टकराव नहीं है, अलबत्ता यह मसअला चूंकि बारीक और गूढ़ बातें अपने भीतर समोए हुए है, फिर भी यह हक़ीक़त इस जगह हमेशा नज़रों में रहनी चाहिए कि पहला इंसान, (जों कि मौजूदा इंसान की नस्ल का बाबा आदम है, भले ही तरक्की (Evolution) के नजर्ये के मुताबिक दर्जा बा दर्जा इंसानी शक्ल तक पहुंचा हो या पैदाइश की शुरूआत ही में इंसानी शक्ल में वजूद में आया हो इल्म और मज़हब दोनों का इस पर इत्तिफ़ाक़ (सहमति) है कि मौजूदा इसान ही इस कायनात की सबसे बेहतर मख्लूख है।

………. और अक्ल और सूझ बुझ ढांचा ही अपने अमल और किरदार के लिए जवाबदेह है और दस्तूर व कानून का मुकल्लफ़ है या इस तरह समझ लीजिए कि इंसानी किरदार और उसके इल्मी और अमली, साथ ही अख्लाकी किरदार को देखते हुए इस बात की कोई अहमियत नहीं है कि इसके पैदा होने, ढलने और वजूद की दुनिया में आने की तफ़्सील क्‍या है, बल्कि अहमियत की बात यह है कि इस पैदा हुई दुनिया में उसका वजूद यूँ ही  बेमतलब और बेमक्सद है या उसकी हस्ती अपने भीतर बहुत बड़ा मकसद लेकर वजूद में आई है? क्‍या उसके अफआल व अक़्वाल और किरदार व गुफ़्तार (कर्म-कथन, चरित्र-आचरण) के असरात (प्रभाव) बहुत अधिक हैं? क्या उसकी माही और रूहानी कुदरतें सब की सब बेकार और बे-नतीजा हैं या क्रीमती फलों से लदी हुई और हिक्मत से भरी हुई हैं? और क्‍या उसकी ज़िंदगी अपने भीतर कोई रौशन व ताबनाक हकीकत रखती है और घोर अंधेरे वाले भविष्य (मुस्तक्रिबिल) का पत्ता देती है और उसका माज़ी व हाल अपने मुस्तक़िबल को नहीं जानता?

………. पस॒ अगर इन हृक़ीक़तों का जवाब “नहीं’ में नहीं, बल्कि हां! में है तो फिर कूदरती तौर पर यह मानना ही होगा कि उसकी पैदाइश की कैंफ़ियत (दशा) पर बहस की जाए, उसके बुजूद के मकसद पर पूरी निगाह रखी जाए और यह मान लिया जाए कि पैदा की हुई चीज़ों में सबसे बेहतर हस्ती का वुजूद बेशक बड़े मकसद का पता देता है और इसलिए उसकी अख्लाक़ी क्ंद्रों का ज़रूर कोई ‘मसले आला’ (बड़ी नंज़ीर) और उसकी पैदा करने का कोई मकसद है।

………. कुरआन पाक ने इसीलिए इंसान से मुताल्लिक्र पॉज़िटिव और निगेटिव हर दो पहलू को वाज़ेह करके इंसानी हस्ती के बड़प्पन का एलान किया और बतलाया है कि कायनात के पैदा करने वाले और बनाने-संवारने वाले की कुदरत में इंसान की पैदाइश ‘सबसे बेहतर’ का दर्जा रखती है और इसी वजह से वह तमाम कायनात के मुकाबले में “बड़े होने और अज़ीम होने’ का हक़दार है और अपने कामों और तरीक़ों की वजह से बेहतर वही अल्लाह की अमानत का अलमबरदार होकर “अल्लाह की जमींन का ख़लीफ़ा‘ के मंसब पर बने रहने का हक़ रखता है और जब यह सब कुछ उसमें मौजूद है तो फिर यह कैसे मुम्किन था कि उसकी हस्ती को यों ही बेमक्सद और बेनतीजा छोड़ दिया जाता।

❝ क्या लोगों (इंसानों) ने यह गृग्रान कर लिया है कि वे बेमक्सद छोड दिए जाएंगे? [अल-क्रियाम : 75:36]

और ज़रूरी है कि अक़्ल व शऊर के इस पैकर को त्तमाम कायनात में नुमाया बनाकर नेकी व बुराई की तमीज़ अता की जाए और बुराई से परहेज और भलाई के अख्तियार का मुकल्लफ़ (ज़िम्मेदार) बनाया जाए।

❝ अल्लाह ताला ने। इंसान को पैदा किया और फ़िर नेकी और बदी की राह दिखाई।  [ताहा 20:50]

❝ फ़िर हमने इंसान को दोनों रास्ते (नेकी और बुराई) दिखाए। [अल-बलद 90:10]

………. गरज़ कुरआन मजीद की याददेहानी और दावत भलाइयों को करने और बुराइयों को रोकने और रुश्द व हिदायत का मुख़ातब और शुरु और आखिर का मेहवर मरकज सिर्फ यही हस्ती तो है ,  जिसको इंसान कहते है।  और यही वजह है के कुरआन ने पहले इंसान की पैदाइश की कैफ़ियतों और तफ़्सीलों को नजरअंदाज करके उसके शुरू और आख़िर को ही यह अहमियत दी है।

इल्मी बहसों से मुतालिक इस्लामी नुक्ता-ए-नज़र (दृष्टिकोण)

………. असल में इसकी इल्मी बहसों के लिए इस्लाम की तालीम यह है कि जो मसअले यक्रीन और मुशाहदे के इल्म की हद तक पहुंच चुके हैं और क़ुरआनी इल्म और अल्लाह की वह्य इन हक़ीक़तों का इंकार नहीं करती, क्योंकि कुरआन मुशाहदे और हिदायत का कभी भी इंकार नहीं करता” तो उन को बिना किसी शक के मान लिया जाए,

………. इसलिए कि ऐसी हक़ीक़तों का इंकार बेजा तअस्सुब और तंगनज़री के सिवा और कुछ नहीं और जो पहले अभी तक यकींन की इन मंज़िलों तक नहीं पहुंचे जिनको मुशाहदा और हिदायत कहा जा सके जैसा कि बहस में आया मसअला है, तो इनके बारे में कुरआन के मतलबों में ताबील नहीं करनी चाहिए और ख़ामख़ाही उनको नई तहक़ीक़ के सांचे में ढालने की कोशिश हरगिज़ जायज़ नहीं, बल्कि वक़्त का इंतजार करना चाहिए कि वे मसअले अपनी हक़ीक़त को इस तरह जाहिर कर र्दे कि उनके इंकार मे मुशाहदा और हक़ीक़त का इंकार लाज़िम आ जाएं,

………. इसलिए कि यह हक़ीकत है कि इल्मी बहसों को तो बार-बार अपनी जगह से हटना पड़ा है। मगर क़रआनी इल्मों को कभी एक बार भी अपनी जगह से हटने की ज़रूरत पेश नहीं आयी और जब कभी इल्मी मसअले बहस व नज़र के बाद यकीन और मुशाहदे की हद तक पहुंचे हैं, वे एक नुक़्ता भी इससे आगे नहीं गए जिसको कुरआन ने पहले वाजेह कर दिया है।

कायनात की पैदाइश और पहला इंसान » Qasas ul Anbiya: Part 1

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