कायनात की पैदाइश और पहला इंसान » Qasas ul Anbiya: Part 1

Friday, August 28, 2020

हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम

 


हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम (भाग: 2) » Qasas ul Anbiya: Part 8.2

Ibrahim Alaihis Salam: Qasas-ul-Ambiya Series in Hindi: Post 8.2

पिछली पोस्ट (भाग: १) में हमने इब्राहिम अलैहि सलाम का तारुफ़ देखा। अब इस पोस्ट (भाग: 2) में हम देखेंगे क़ौम की सितारा परस्ती और क़ौम के नसीहत के लिए इब्राहिम अलैहि सलाम की बुतों से बगावत

सितारा परस्ती: 

हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम की क़ौम बुतपरस्ती के साथ-साथ सितारा-परस्ती भी करती थी और यह अकीदा था कि इंसानों की मौत और हयात, उनकी रोजी, उनका नफा-नुकसान, खुश्कसाली, कहतसाली, जीत और कामियाबी और हार और पस्ती, ग़रज़ दुनिया के तमाम कारखाने का नज़्म व नस्क तारे और उनकी हरकतों की तासीर पर चल रहा है और यह तासीर उनकी जाती। सिफ़तों में से है, इसलिए इनकी ख़ुशनूदी जरूरी है और यह उनकी पूजा के बिना मुम्किन नहीं है।

इस तरह हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम जिस तरह उनको उनकी सिफ़ली, झूठे माबूदों की हक़ीक़त खोल करके हक़ के रास्ते की तरफ़ दावत दी, उसी तरह ज़रूरी समझा कि उनके झूठे बातिल माबूदों की बे-सबाती और फ़ना के मंज़र को पेश करके इस हक़ीक़त से भी आगाह कर दें कि तुम्हारा यह ख्याल बिल्कुल गलत है कि इन चमकते हुए सितारों, चांद और सूरज को ख़ुदाई ताक़त हासिल है। हरगिज़ नहीं, यह बेकार का ख्याल और बातिल अक़ीदा है।

मगर ये बातिल-परस्त जबकि अपने खुद के गढ़े हुए बुतों से इतने डरे हा थे कि उनको बुरा कहने वाले के लिए हर वक़्त यह सोचते थे कि उनके ग़ज़ल में आकर तबाह व बर्बाद हो जाएगा, तो ऐसे तौहाम परस्तों के दिलों में बुलन्द सितारों की पूजा के ख़िलाफ़ जज़्चा पैदा करना कुछ आसान काम न था इसलिए हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने उनके दिमाग के मुनासिब एक अजीब और दिलचस्प तरीका बयान व अख़्तयार किया।

तारों भरी रात थी, एक सितारा खूब रोशन था। हज़रत इब्राहीम अपने उसको देखकर फ़रमाया ‘मेरा रब यह है।’ इसलिए अगर सितारे को रब मान सकते हैं तो यह उनमें सबसे मुमताज़ और रोशन है। लेकिन जब वह अपने तैशुदा वक्त पर नज़र से ओझल हो गया और उसको यह मजाल न हुई कि एक घड़ी और रहनुमाई करा सकता और कायनात के निज़ाम से हट कर अपने पूजने वालों के लिए ज़ियारतगाह बना रहता, तब हज़रत इब्राहीम ने फ़रमाया, मैं छुप जाने वालों को पसंद नहीं करता। यानी जिस चीज़ पर मुझसे भी ज़्यादा तब्दीलियों का असर पड़ता हो और जो जल्द-जल्द इन असरात को कुबूल कर लेता हो, वह मेरा माबूद क्यों हो सकता है?

फिर निगाह उठाई तो देखा कि चांद आब व ताब के साथ सामने मौजूद है, उसको देखकर फरमाया, ‘मेरा रब यह है। इसलिए यह खूब रोशन है और अपनी ठंडी रोशनी से सारी दुनिया को नूर का गढ़ बनाए हुए है! पस अगर तारों को रब बनाना ही है तो इसी को क्यों न बनाया जाए, क्योंकि यही इसका ज़्यादा हक़दार नज़र आता है।

फिर जब सुबह का वक्त होने लगा तो चांद के भी हल्के पड़ जाने और छुप जाने का वक्त आ पहुंचा और जितना ही सूरज के उगने का वक्त होता गया, चांद का जिस्म देखने वाले की नजरों से ओझल होने लगा, तो यह देखकर हजरत इब्राहीम ने एक ऐसा जुम्ला फ़रमाया, जिससे चांद के रब होने की मनाही के साथ-साथ एक अल्लाह की हस्ती की तरफ़ क़ौम की तवज्जोह इस ख़ामोशी से फेर दी कि कौम इसका एहसास न कर सके और इस बात-चीत का एक ही मक्सद है यानी ‘सिर्फ एक अल्लाह पर ईमान’, वह उनके दिलों में बगैर कस्द व इरादे के बैठ जाए, फ़रमाया
अगर मेरा सच्चा पालनहार मेरी रहनुमाई न करता, तो मैं भी जरूर गुमराह कौम में से ही एक होता।

पस इतना फ़रमाया और ख़ामोश हो गए, इसलिए कि इस सिलसिले की अभी एक कड़ी और बाकी है और कौम के पास अभी मुकाबले के लिए एक हथियार मौजूद है इसलिए इससे ज़्यादा कहना मुनासिब नहीं था।

तारों भरी रात ख़त्म हुई, चमकते सितारे और चांद सब नज़रों से ओझल हो गए, क्यों? इसलिए कि अब आफ़ताब आलमताब का रुख्ने रोशन सामने आ रहा है। दिन निकल आया और वह पूरी आब व ताब से चमकने लगा।

हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने उसको देखकर फ़रमायाः यह है मेरा रब क्योंकि यह तारों में सबसे बड़ा है और निजामे फ़लकी में इससे बडा सितारा हमारे सामने दूसरा नहीं है। लेकिन दिन भर चमकने और रोशन रहने और पूरी दुनिया को रोशन करने के बाद मुक़र्रर वक्त पर उसने भी इराक की सरज़मीन से पहलू बचाना शुरू कर दिया और अंधेरी रात धीरे-धीरे सामने आने लगी। आखिरकार वह नजरों से गायब हो गया तो अब वक्त आ पहुंचा कि इब्राहीम अलैहि सलाम असल हक़ीक़त का एलान कर दें और क़ौम को लाजवाब बना दें कि उनके अक़ीदे के मुताबिक अगर इन तारों को रब और माबूद होने का दर्जा हासिल है, तो इसकी क्या वजह कि हमसे भी ज़्यादा इनमें तब्दीलियां नुमायाँ हैं और ये जल्द-जल्द उनके असरों से मुतास्सिर होते हैं और अगर माबूद हैं तो इनमें (उफ़ोल) (चमक कर फिर डूब जाना) क्यों है? जिस तरह चमकते नज़र आते थे उसी तरह क्यों न चमकते रहे, छोटे सितारों की रोशनी को चांद ने क्यों मांद कर दिया और चांद के चमकते रुख को आफ़ताब के नूर ने किस लिए बेनूर बना दिया?

पस ऐ कौम! मैं इन शिर्क भरे अक़ीदों से बरी हूं और शिर्क की जिंदगी से बेज़ार, बेशक मैंने अपना रुख सिर्फ़ उसी एक अल्लाह की ओर कर लिया है जो आसमानों और ज़मीनों का पैदा करने वाला है, मैं ‘हनीफ़’ (एक अल्लाह की इताअत के लिए यक्स) हूं और मुशरिक (शिर्क करने वाला) नहीं हूं।

अब क़ौम समझी कि यह क्या हुआ? इब्राहीम ने हमारे तमाम हथियार बेकार और हमारी तमाम दलीलें पामाल करके रख दीं। अब हम इब्राहीम की इस मज़बूत और खुली दलील को किस तरह रद्द करें और उसकी रोशन दलील का क्या जवाब है? वे इसके लिए बिल्कुल बेबस और पस्त थे और जब कोई बस न चला तो कायल होने और हक़ की आवाज को कुबूल कर लेने के बजाय हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम से झगड़ने लगे और अपने झूठे माबूदों से डराने लगे कि वे तेरी तौहीन का तुझसे ज़रूर बदला लेंगे और तुझको इसकी सजा भुगतनी पड़ेगी।

हजरत इब्राहीम ने फ़रमाया, क्या तुम मुझसे झगड़ते और अपने बुतों से मुझको डराते हो? हालांकि अल्लाह ने मुझ को सही रास्ता दिखा दिया है और तुम्हारे पास गुमराही के सिवा कुछ नहीं, मुझे तुम्हारे बुतों की कतई कोई परवाह नहीं, जो कुछ मेरा रब चाहेगा, वही होगा। तुम्हारे बुत कुछ नहीं कर सकते, क्या तुमको इन बातों से कोई नसीहत हासिल नहीं होती? तुम को तो अल्लाह की नाफ़रानी करने और उसके साथ बुतों को शरीक ठहराने में भी कोई डर नहीं होता? जिसके लिए तुम्हारे पास एक दलील भी नहीं है और मुझसे यह उम्मीद रखते हो कि एक अल्लाह का मानने वाला और दुनिया के अमन का जिम्मेदार होकर मैं तुम्हारे बुतों से डर जाऊंगा, काश कि तुम समझते कि फ़सादी कौन है और कौन है सुलहपसन्द और अमनपसन्द?

सही अमन की जिंदगी उसी को हासिल है जो एक अल्लाह पर ईमान रखता और शिर्क से बेज़ार रहता है और वही रास्ते पर है। बहरहाल अल्लाह की यह शानदार हुज्जत थी जो उसने हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम की जुबान से बुत-परस्ती के ख़िलाफ़ हिदायत व तब्लीग़ के बाद कवाकिब-परस्ती (तारा-परस्ती) के रद्द में जाहिर फ़रमाई और उनकी क़ौम के मुकाबले में उनको रोशन और खुली दलीलों से सरबुलन्दी अता फरमाई।

ग़रज़ इन तमाम रोशन और खुली दलीलों के बाद भी जब क़ौम ने इस्लाम की दावत कुबूल न की और बुतपरस्ती और कवाकिबपरस्ती में उसी तरह पड़ी रही तो हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम ने एक दिन जम्हूर के सामने जंग का एलान कर दिया कि मैं तुम्हारे बुतों के बारे में एक ऐसी चाल चलूंगा जो तुम को ज़ित कर के ही छोड़ेगी।

इस मामले से मुताल्लिक असल सूरते हाल यह है कि जब इब्राहीम अलैहि सलाम ने आजर और कौम के लोगों को हर तरह बुत-परस्ती के ऐबों को जाहिर कर के उससे बाज रहने की कोशिश कर ली और हर किस्म की नसीहतों के जरिए उनको यह बताने में ताकत लगा ली कि ये बुत न नफ़ा पहुंचा सकते हैं, न नुक्सान और यह कि तुम्हारे काहिनों और पेशवाओं ने उनके बारे में तुम्हारे अक्लो पर खौफ़ बिठा दिया है कि अगर उनके इंकारी हो जाओगे तो ये ग़जबनाक हो कर तुमको तबाह कर डालेंगे, ये तो अपनी आई हुई मुसीबत को भी नहीं टाल सकते, मगर आजर और कौम के दिलों पर मुतलक असर न हुआ और वे अपने देवताओं की खुदाई ताकत के अक़ीदे से किसी तरह बाज़ न आए, बल्कि काहिनों और सरदारों ने उनको और ज़्यादा पक्का कर दिया और इब्राहीम की नसीहत पर कान धरने से सख्ती के साथ रोक दिया, सब हज़रत इब्राहीम ने सोचा कि मुझको रुश्द व हिदायत का ऐसा पहलू अख्तियार करना चाहिए जिससे लोग यह देख लें कि वाक़ई हमारे देवता सिर्फ लकड़ियों और पत्थरों की मूर्तियां हैं, जो गूंगी भी हैं, बहरी भी हैं, और अंधी भी और दिलों में यह यकीन बैठ जाए कि जब तक उनके बारे में हमारे काहिनों और सरदारों ने जो कुछ कहा था वह बिल्कुल गलत और बे सर-पैर की बात थी और इब्राहीम ही की बात सच्ची है। अगर ऐसी कोई शक्ल बन गई तो फिर मेरे लिए हक़ की तब्लीग के लिए आसान राह निकल आएगी। यह सोचकर उन्होंने अमल का एक निजाम तैयार किया, जिसको किसी पर जाहिर नहीं होने दिया और उसकी शुरूआत इस तरह की कि बातों-बातों में अपनी क़ौम के लोगों से यह कह गुज़रे कि, ‘मैं तुम्हारे बुतों के साथ एक खुफिया चाल चलूंगा।

क़ौम के नसीहत के लिए बुतों से बगावत :

गोया इस तरह उनको तंबीह करनी थी कि ‘अगर तुम्हारे देवताओं में कुछ कुदरत है, जैसा कि तुम दावा करते हो तो वे मेरी चाल को बातिल और मुझको मजबूर कर दें कि मैं ऐसा न कर सकूँ।‘ मगर चूंकि बात साफ़ न थी, इसलिए क्रौम ने इस ओर कुछ तवज्जोह न दी। इत्तिफ़ाक़ की बात कि करीब ही के जमाने में क़ौम का एक मज़हबी मेला पेश आया। जब सब उसके लिए चलने लगे तो कुछ लोगों ने इब्राहीम से इसरार किया कि वह भी साथ चलें। हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने पहले तो इंकार किया और फिर जब इस तरफ़ से इसरार बढ़ने लगा तो सितारों की तरफ निगाह उठाई और फ़रमाने लगे, ‘मैं आज कुछ बीमार-सा हूं।’ चूंकि इब्राहीम की कौम को कवाकिब-परस्ती की वजह से तारों में कमाल भी था और एतक़ाद भी इसलिए अपने अकीदे के लिहाज से वे यह समझे कि इब्राहीम किसी नहस सितारे के बुरे असर में फंसे हुए हैं और यह सोचकर और किसी तफ्सील को जाने बगैर वे इब्राहीम को छोड़कर मेला चले गए।

अब जबकि सारी कौम, बादशाह, काहिन और मजहबी पेशवा मेले में मसरूफ़ और शराब व कबाब में मशगूल थे, तो हजरत इब्राहीम ने सोचा कि वक्त आ गया है कि अपने अमल के निज़ाम को पूरा करूं और आंखों से दिखाकर सब पर वाजेह कर दूं कि उनके देवताओं की हक़ीक़त क्या है? वह उठे और सबसे बड़े देवता के हैकल (मन्दिर) में पहुंचे। देखा तो वहां देवताओं के सामने किस्म-किस्म के हलवों, फलों, मेवों और मिठाइयों के चढ़ावे रखे थे। इब्राहीम ने तंज भरे लहजे में चुपके-चुपके इन मूर्तियों से खिताब करके कहा कि यह सब कुछ मौजूद है, उनको खाते क्यों नहीं और फिर कहने लगे। मैं बात कर रहा हूं, क्या बात है कि तुम जवाब नहीं देते? और फिर इन सब को तोड़-फोड़ डाला और सबसे बड़े बुत के कांधे पर तीर रखकर वापस चले गए।

जब लोग मेले से वापस आए तो हैकल (मन्दिर) में बुतों का यह हाल पाया, बहुत बिगड़े, और एक दूसरे से पूछने लगे कि यह क्या हुआ और किसने किया? इनमें वे भी थे, जिनके सामने हजरत इब्राहीम ‘तल्लाहि ल त-‘अकीदन-न असनामकुम‘ (अल-अंबिया 21-57) कह चुके थे, उन्होंने फ़ौरन कहा कि यह उस आदमी का काम है, जिसका नाम इब्राहीम है। वहीं हमारे देवताओं का दुश्मन है।

काहिनों और सरदारों ने यह सुना तो ग़म व गुस्से से लाल हो गए और कहने लगे, इसको मज्मे के सामने पकड़ कर लाओ, ताकि सब देखें कि मुजरिम कौन आदमी है?

इब्राहीम अलैहि सलाम सामने लाए गए तो बड़े रौब व दाब से उन्होंने पूछाः क्यों इब्राहीम! तूने हमारे देवताओं के साथ यह सब कुछ किया है? इब्राहीम ने देखा कि अब वह बेहतरीन मौक़ा आ गया है, जिसके लिए मैंने यह तदबीर अखियार की। मज्मा मौजूद है। लोग देख रहे हैं कि उनके देवताओं का क्या हश्र हो गया इसलिए अब काहिनों, मज़हबी पेशकाओं को लोगों की मौजूदगी में उनके बातिल अक़ीदे पर शर्मिंदा कर देने का वक्त है, तो आम लोगों को आंखों देखते मालूम हो जाए कि आज तक इन देवताओं से मुताल्लिक जो कुछ हमसे काहिनों और पुजारियों ने कहा था, यह सब उनका मकर व फ़रेब था। मुझे उनसे कहना चाहिए कि यह सब उस बड़े बुत की कार्रवाई है, उससे मालूम करो? ला महाला वे यही जवाब देंगे कि कहीं बुत भी बोलते और बात करते हैं, तब मेरा मतलब हासिल है और फिर मैं उनके अक़ीदे की पोल लोगों के सामने खोलकर सही अक़ीदे की तलक़ीन कर सकूँगा और बताऊंगा कि किस तरह वे बातिल और गुमराही में मुब्तेला हैं। उस वक्त उन काहिनों और पुजारियों के साथ शर्मिन्दगी के सिवा क्या होगा, इसलिए हज़रत इब्राहीम ने जवाब दिया –

तर्जुमा-‘इब्राहीम ने कहा, बल्कि इनमें से इस बड़े बुत ने यह किया है। पस अगर ये (तुम्हारे देवता) बोलते हों, तो इनसे मालूम कर लो।’ [अल-अम्बिया, 21 : 68]

इब्राहीम अलैहि सलाम की इस यक़ीनी हुज्जत और दलील का काहिनों और पुजारियों के पास क्या जवाब हो सकता था? वह शर्म से डूबे हुए थे, दिलों में जलील व रुस्वा थे और सोचते थे कि क्या जवाब दें?

आम लोग भी आज सब कुछ समझ गए और उन्होंने अपनी आंखों से यह मंजर देख लिया जिसके लिए वे तैयार न थे, यहां तक कि छोटे और बड़े सभी को दिल में इक़रार करना पड़ा कि इब्राहीम अलैहि सलाम जालिम नहीं है, बल्कि ज़ालिम हम ख़ुद हैं कि ऐसे बेदलील और बातिल अकीदे पर यकीन रखते हैं, तब शर्म से सिर झुकाकर कहने लगे, ‘इब्राहीम! तू खूब जानता है कि इन देवताओं में बोलने की ताक़त नहीं है, ये तो बेजान मूर्तियां हैं।

इस तरह हजरत इब्राहीम की हुज्जत व दलील कामयाब हुई और दुश्मनों ने मान लिया कि जालिम हम ही हैं और उनको तमाम लोगों के सामने जुबान से इक़रार करना पड़ा कि हमारे ये देवता जवाब देने और बोलने की ताक़त नहीं रखते, नफ़ा व नुक्सान का मालिक होना दूर की बात है, तो अब इब्राहीम अलैहि सलाम  ने थोड़े में, मगर जामे लफ़्जों में उनको नसीहत भी की और मलामत भी और बताया कि जब ये देवता न नफ़ा पहुंचा सकते हैं, न नुक्सान, तो फिर ये ख़ुदा और माबूद कैसे हो सकते हैं, अफ़सोस ! तुम इतना भी नहीं समझते या अक्ल से काम नहीं लेते?

फ़रमाने लगे–

‘क्या तुम अल्लाह तआला को छोड़कर उन चीज़ों की पूजा करते हो जो तुमको न कुछ नफ़ा पहुंचा सकते हैं और न नुक्सान दे सकते हैं, तुम पर अफ़सोस है और तुम्हारे इन झूठे माबूदों पर भी, जिनको तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो, क्या तुम अक्ल से काम नहीं लेते। [अल अबिया 21:67]

तर्जुमा-पस वे सब हल्ला करके इब्राहीम के गिर्द जमा हो गए। इब्राहीम ने कहा कि जिन बुतों को हाथ से गढ़ते हो, उन्हीं को फिर पूजते हो और असल यह है कि अल्लाह तआला ही ने तुमको पैदा किया है और उनको भी जिन कामों को तुम करते हो। [अस्साफ्फ्रात, 37:95-96]

हज़रत इब्राहीम के इस वाज व नसीहत का असर यह होना चाहिए था कि तमाम क्रोम अपने बातिल अक़ीदे से तौबा करके सही दींन को इख़्तेयार कर लेती और टेढ़ा रास्ता छोड़कर सीधे रास्ते पर चल पड़ती, लेकिन दिलों का टेढ़, नफ़्स की सरकशी, घमंडी जेहनियत और बातिनी ख़बासत व नीचपन ने इस ओर न आने दिया और इसके खिलाफ़ उन सबने इब्राहीम अलैहि सलाम की अदावत व दुश्मनी का नारा बुलन्द कर दिया और एक दूसरे से कहने लगे कि अगर देवताओं की ख़ुशनूदी चाहते हो तो उसको इस गुस्ताखी और मुज्रिमाना हरकत पर सख्त सजा दो और देहकती आग में जला डालो, ताकि उसकी तब्लीग़ व दावत का किस्सा ही पाक हो जाए।

इंशाअल्लाह! अगले पार्ट ३ में हम देखेंगे बादशाह को इस्लाम की दावत और इब्राहिम अलैहि सलाम को सजा के तौर पर तैयार की हुई दहकती आग का ठंडा हो जाना। 

हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम

 




हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम (भाग: 1) » Qasas ul Anbiya: Part 8.1

Ibrahim Alaihis Salam: Qasas-ul-Ambiya Series in Hindi: Post 8.1

۞ बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम ۞

हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम का जिक्र कुरआन पाक में

कुरआन पाक के रुश्द व हिदायत का पैगाम चूं कि इब्राहीमी मिल्लत का पैगाम है, इसलिए कुरआन पाक में जगह-जगह हज़रत इब्राहीम (अलैहि सलाम) का जिक्र किया गया है, जो मक्की-मदनी दोनों किस्म की सूरतों में मौजूद है, यानी 35 सूरतों की 63 आयतों में हज़रत इब्राहीम (अलैहि सलाम) का ज़िक्र मिलता है।

हजरत इब्राहीम के वालिद का नाम

तारीख़ और तौरात दोनों हजरत इब्राहीम के वालिद का नाम ‘तारिख’ बताते हैं और कुरआन पाक के एतबार से हज़रत इब्राहीम (अलैहि सलाम) के वालिद का नाम ‘आजर’ है। इस सिलसिले में उलेमा, तफ़्सीर लिखने वाले, मगरिबी मुश्तशरकों और तहक़ीक़ करने वालों ने बड़ी-बड़ी, लंबी-लंबी बहसें की हैं लेकिन इनमें अख्तियार की गई ठंडी ठंडी बातें हैं इसलिए कि कुरआन मजीद ने जब खोल-खोल कर आज़र को अब (इब्राहीम अलैहि सलाम का बाप) कहा है तो फिर अंसाब के उलेमा और बाइबल की तख्मिणी अटकलों से मुतास्सिर होकर कुरआन मजीद की यक़ीनी ताबीर को मजाज़ कहने या इससे भी आगे बढ़कर कुरआन मजीद में कवाइद की बातें मानने पर कौन-सी शरई और हक़ीकी जरूरत मजबूर करती है। साफ़ और सीधा रास्ता यह है कि जो कुरआन मजीद में कहा गया उसको मान लिया जाए, चाहे वह नाम हो या लकब हो।

हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम और दूसरे अंबिया अलैहिमुस्सलाम

हज़रत इब्राहीम के हालात के साथ उनके भतीजे हज़रत लूत अलैहि सलाम और उनके बेटों हज़रत इसमाइल अलैहि सलाम और हज़रत इस्हाक़ अलैहि सलाम के वाकिआत भी वाबिस्ता हैं। इन तीनों पैग़म्बरों के तफ्सीली हालात इनके तज्किरों में बयान किए गए हैं, यहां सिर्फ़ हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के हालात के तहत कहीं कहीं जिक्र आएगा।

हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम की अज़्मत

हजरत इब्राहीम की शान की इस अज़्मत के पेशेनज़र जो नबियों और रसूलों के दर्मियान उनको हासिल है कुरआन मजीद में उनके वाकिआत को अलग-अलग उस्लूब के साथ जगह-जगह बयान किया गया है। एक जगह पर अगर थोड़े में जिक्र है, तो दूसरी जगह तफ़सील से तज़किरा किया गया है और कुछ जगहों पर उनकी शान और खूबी को सामने रखकर उनकी शख्सियत को नुमायां किया गया है।

तौरात यह बताती है कि हजरत इब्राहीम इराक के क़स्बा ‘उर’ के बाशिंदे थे और अहले फ़द्दान में से थे और उनकी क़ौम बुत-परस्त थी, जबकि इंजील में साफ लिखा है कि उनके वालिद नज्जारी का पेशा करते और अपनी काम के अलग-अलग कबीलों के लिए लकड़ी के बुत बनाते और बेचा करते थे, मगर हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम को शुरू ही से हक की बसीरत और रुश्द व हिदायत अता फ़रमाई और वे यह यक़ीन रखते थे कि बुत न देख सकते हैं न सुन सकते हैं और न किसी की पुकार का जवाव दे सकते हैं और न नफा व नुक्सान का उनसे कोई वास्ता है और न लकड़ी के खिलौनो और दूसरी बनी हुई चीज्ञों के और उनके बीच कोई फ़र्क और इम्तियाज़ है। वे सुबह व शाम आंख से देखते थे कि इन बेजान मूर्तियों को मेरा बाप अपने हाथों से बनाता और गढ़ता रहता है और जिस तरह उसका दिल चाहता है नाक-कान आंखें गढ़ लेता है और फिर खरीदने वालों के हाथ बेच देता है, तो क्या ये खुदा हो सकते हैं या ख़ुदा-जैसे या खुदा के बराबर हो सकते हैं?

हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने जब यह देखा कि क़ौम बुतपरस्ती, सितारापरस्ती और मज़ाहिर-परस्ती में ऐसी लगी हुई है कि खुदा-ए-बरतर की कुदरते मुतलका और उसके एक होने और समद होने का तसव्वुर भी उनके दिलों में बाकी न रहा और अल्लाह के एक होने के अक़ीदे से ज्यादा कोई ताज्जुब की बात नहीं रही, तब उसने अपनी हिम्मत चुस्त की और ज़ाते वाहिद के भरोसे पर उनके सामने दीने हक का पैग़ाम रखा और एलान किया –

“ऐ कौम! यह क्या है जो में देख रहा हूं कि तुम अपने हाथ से बनाए हुए बुतों की परस्तिश में लगे हुए हो। क्या तुम इस क़दर गफलत के ख्वाब में हो कि जिस बेजान लकड़ी को अपने हथियारों से गढ़ कर मूर्तियां तैयार करते हो, अगर वे मर्जी के मुताबिकं न बनें, तो उनको तोड़ कर दूसरे बना लेते हो, बना लेने के बाद फिर उन्हीं को पूजने और नफा-नुकसान का मालिक समझने लगते हो, तुम इस खुराफ़ात से बाज आ जाओ, अल्लाह की तौहीद के नज्म गाओ और उस एक हकीकी मालिक के सामने सरे नियाज झुकाओ जो मेरा, तुम्हारा और कुल कायनात का खालिक व मालिक है।”

मगर कौम ने उसकी आवाज पर बिल्कुल ध्यान न धरा और चूंकि हक़ सुनने वाले कान और हक़ देखने वाली निगाह से महरूम थी, इसलिए उसने जलीलुलकद्र पैग़म्बर की दावते हक़ का मजाक उड़ाया और ज्यादा से ज़्यादा तमरुद व सरकशी का मुजाहरा किया।

बाप को इस्लाम की दावत और बाप-बेटे का मुनाज़रा

हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम देख रहे थे कि शिर्क का सबसे बड़ा मर्कज ख़ुद उनके अपने घर में क़ायम है और आज़र की बुतपरस्ती और बुतसाज़ी पूरी क़ौम के लिए एक धुरी बनी हुई है इसलिए फ़ितरत का तकाजा है कि हक की दावत और सच्चाई के पैग़ाम के फ़र्ज की अदाएगी की शुरूआत घर से ही होनी चाहिए, इसलिए हज़रत इब्राहीम ने सब से पहले अपने वालिद ‘आजर‘ ही को मुखातब किया और फ़रमाया –

“ऐ बाप! ख़ुदापरस्ती और मारफ़ते इलाही के लिए जो रास्ता तूने अपनाया है और जिसे आप बाप-दादा का पुराना रास्ता बताते हैं, यह गुमराही और बातिलपरस्ती का रास्ता है और सीधा रास्ता (राहे हक) सिर्फ वही है, जिसकी मैं दावत दे रहा हूं। ऐ बाप! तौहीद ही नजात का सरचश्मा है, न कि तेरे हाथ के बनाए गए बुतों की पूजा और इबादत। इस राह को छोड़कर हक़ और तौहीद के रास्ते को मजबूती के साथ अख्तियार कर, ताकि तुझको अल्लाह की रजा और दुनिया और आखिरत की सआदत हासिल हो।”

मगर अफ़सोस कि आज़र पर हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम की नसीहतों का बिल्कुल कोई असर नहीं हुआ, बल्कि हक कुबूल करने के बजाए आजर ने बेटे को धमकाना शुरू किया। कहने लगा कि इब्राहीम! अगर तू बुतों की बुराई से बाज़ न आएगा, तो मैं तुझको पत्थर मार-मारकर हलाक कर दूंगा।

हजरत इब्राहीम ने जब यह देखा कि मामला हद से आगे बढ़ गया और एक तरफ़ अगर बाप के एहतराम का मसला है तो दूसरी तरफ़ फ़र्ज़ की अदायगी हक़ की हिमायत और अल्लाह के हुक्म की इताअत का सवाल, तो उन्होंने सोचा और आखिर वही किया जो ऐसे ऊंचे इंसान और अल्लाह की जलीलुलक़द्र पैग़म्बर के शायाने शान था। उन्होंने बाप की सख़्ती का जवाब सख्ती से नहीं दिया। हक़ीर समझने और ज़लील करने का रवैया नहीं बरता बल्कि नहीं, लुत्फ़ व करम और अच्छे अख्लाक़ के साथ यह जवाब दिया “ऐ बाप! अगर मेरी बात का यही जवाब है तो आज से मेरा-तेरा सलाम है। मैं अल्लाह के सच्चे दीन और उसके पैग़ामे हक़ को नहीं छोड़ सकता और किसी हाल में बूतों की परस्तिश नहीं कर सकता। मैं आज तुझसे जुदा होता हूं, मगर ग़ायबाना बारगाहे इलाही में बख्शीस तलब करता रहूंगा, ताकि तुझको हिदायत नसीब हो और तू अल्लाह के अज़ाब से नजात पा जाए।”

क़ौम को इस्लाम की दावत और उससे मुनाज़रा

बाप और बेटे के दर्मियान जब मेल की कोई शक्ल न बनी और आज़र ने किसी तरह इब्राहीम की रुश्द व हिदायत को कुबूल न किया, तो हज़रत इब्राहीम ने आज़र से जुदाई अख्तियार कर ली और अपनी हक़ की दावत और रिसालत के पैगाम को फैला दिया और अब सिर्फ आजर ही मुखातब न रहा बल्कि पूरी क़ौम को मुखातब बना लिया, मगर कौम अपने बाप-दादा के दीन को कब छोड़ने वाली थी, उसने इब्राहीम की एक न सुनी और हक़ की दावत के सामने अपने बातिल माबूदों की तरह गूंगे, अंधे और बहरे बन गए और जब इब्राहीम ने ज्यादा जोर देकर पूछा कि यह तो बतलाओ कि जिनकी तुम पूजा करते हो, ये तुम्हें किसी किस्म का भी नफ़ा या नुक्सान पहुंचाते हैं, कहने लगे कि इन बातों के झगड़े में हम पड़ना नहीं चाहते? हम तो यह जानते हैं कि हमारे बाप-दादा यही करते चले आए हैं, इसलिए हम भी वही कर रहे हैं। तब हज़रत इब्राहीम ने एक खास अन्दाज़ से ऐक ख़ुदा की हस्ती की तरफ़ तवज्जोह दिलाई और फ़रमाने लगे, मैं तो तुम्हारे इन सब बूतों को अपना दुश्मन जानता हूं, यानी मैं इनसे बे-खौफ़ व खतर होकर इनसे जंग का एलान करता हूं कि अगर यह मेरा कुछ बिगाड़ सकते हैं तो अपनी हसरत निकाल लें।

अलबत्ता मैं उस हस्ती को अपना मालिक समझता हूं जो तमाम जहानों का परवरदिगार है! जिसने मुझको पैदा किया और सीधा रास्ता दिखाया, जो मुझको खिलाता-पिलाता यानी रिज़्क़ देता है और जब में मरीज़ हो जाता हूं तो वह मुझको शिफ़ा बशता है और मेरी जिंदगी और मौत दोनों का मालिक है और यानी ख़ताकारी के वक्त जिससे यह लालच करता हूं कि वह कयामत के दिन मुझको बख्श दे और मैं उसके हुजूर में यह दुआ करता रहता हूं, ऐ परवरदिगार! तू मुझको सही फैसले की ताक़त अता फरमा और मुझको नेकों की सूची में दाखिल कर और मुझको जुबान की सच्चाई अता कर और जन्नते नईम के वारिसों में शामिल कर। मगर आज़र और आज़र की कौम के दिल किसी तरह हक़ कुबूल करने के लिए नर्म न हुए और उनका इंकार हद से गुज़रता ही गया।

इंशा अल्लाह अगले पार्ट में हम क़ौम की सितारा परस्ती और क़ौम के नसीहत के लिए इब्राहिम अलैहि सलाम की बुतों से बगावत को

हज़रत सालेह अलैहि सलाम

 




हज़रत सालेह अलैहि सलाम » Qasas ul Anbiya: Part 7

Saleh Alaihis Salam: Qasas-ul-Ambiya Series in Hindi: Post 7

۞ बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम ۞

समूद क़ौम

समूद, कौम के वही लोग हैं जो पहले आद की हलाकत के बाद हज़रत हुद अलैहि सलाम के साथ बच गए थे और उनकी नस्ल आदे सानिया (द्वितीय आद) कहलाई। उनको ‘समूदे इरम’ भी कहा गया –

समूद की बस्तियां

समूद की आबादियां हिज्र में थी। हिंजाज़ और शाम के दर्मियान वादी कुरा तक जो मैदान नज़र आता है, यह सब उनके रहने की जगह है। समूद की बस्तियों के खंडर और निशान आज तक मौजूद हैं। इनकी ख़ास बात यह है कि इन बस्तियों में मकान पहाड़ों को काट कर बनाए गए थे, गोया समूद तामीरात के मामले मैं बहुत ज़्यादा माहिर थे।

समूद का ज़माना

समुद के ज़माने के मसले के बारे में कोई तै शुदा बाक़ायदा वक्त नहीं बताया जा सकता, अलबता यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि इनका जमाना हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम से पहले का ज़माना है।

समूदियों का मज़हब

समूद अपने बुत्तपरस्त पुरखों की तरह बूतपरस्त थे। वे ख़ुदा के अलावा बहुत से बातिल माबूदों के परस्तार थे और शिर्क में डूबे हुए थे। इसलिए उनकी इस्लाह के लिए भी और उनपर हक़ वाजेह करने के लिए भी उन्ही के कबीले में से हजरत सालेह अलैहि सलाम को नसीहत करनेवाला पैगम्बर और रसूल बनाकर भेजा, ताकि वह ौंको सीधे रास्ते पर लाये, उनपर वाजेह करे की कायनात की हर चीज़ अल्लाह के एक होने और अकेले होने पर गवाह है। उन्हें अल्लाह की नेअमते याद दिलाये और बताये के परश्तिश और इबादत के लायक एक अल्लाह के अलावा दूसरा कोई नहीं।

कुरआन मजीद में आए किस्सों का मतलब

कुरआन मजीद की यह सुन्नत है कि वह इंसानों की हिदायत के लिए पिछली क़ौमों के और उन्हें हिदायत के रास्ते पर लगाने के वाकिये और हालात बयांन करके नसीहतों और वाजों का सामान जुटाता है, ताकि यह मालूम हो सके कि जिन उम्मतों ने उनकी बातों का इंकार किया, और उनका मजाक उड़ाया और उन्हें झुठलाया, तो अल्लाह तआला ने अपने सच्चे रसूल की तस्दीक़ के लिए कभी अपने आप और कभी क़ौम की मांग करने पर ऐसी निशानियां नाज़िल फ़रमाई जो नबियों और रसूलों की तस्दीक़ की वजह बनीं और ‘मोजजा‘ कहलाई, लेकिन अगर क़ौम ने इस निशानी और मोजज़ा के बाद भी झुठलाने को न छोड़ा और न दुश्मनी छोड़ी, बल्कि जिद पर अड़े रहे, तो फिर ‘अल्लाह के अजाब’ ने आकर उनको तबाह व हलाक कर दिया और उनके वाकियों को आने वाली कौम के लिए इबरत व नसीहत का सामान बना दिया।

अल्लाह की ऊटनी

हज़रत सालेह अलैहि सलाम कौम को बार-बार समझाते और फ़रमाते रहे, पर कौम पर बिलकुल असर न हुआ, बल्कि उसकी दुश्मनी तरक़्क़ी पाती रही और उसका विरोध बढ़ता ही रहा और वह किसी तरह बुत्तपरस्ती से बाज़ न आई। अगरचें एक छोटी और कमज़ोर जमाअत ने ईमान क़ुबूल कर लिया और वह मुसलमान हो गई, मगर क़ौम के सरदार और बड़े-बड़े सरमायादार उसी तरह बातिल-परस्ती पर क़ायम रहे और उन्होंने दी हुईं हर किस्म की नेमतों का शुक्रिया अदा करने के बजाए नाशुक्री का तरीक़ा अपना लिया। वे हज़रत सालेह अलैहि सलाम का मज़ाक़ उड़ाते हुए कहा करते कि ‘सालेह अलैहि सलाम अगर हम बातिल परस्त होते, अल्लाह के सही मज़हब के इंकारी होते और उसके पसंदीदा तरीक़े पर कायम न होते, तो आज हमको यह सोने-चांदी की बहुतात, हरे-भरे बाग और दूसरी नेमते हासिल न होतीं। तुम ख़ुद को और अपने मानने वालों को देखो ओर फिर उनकी तंगहाली, और गरीबी पर नज़र करों और बतलाओ कि अल्लाह के प्यारे और मकबूल कोन हैं?

हज़रत सालेह अलैहि सलाम फ़रमाते कि ‘तुम अपने इस ऐश और अमीरी पर शेखी न मारो और अल्लाह के सच्चे रसूल और उसके सच्चे दीन का मज़ाक न उड़ाओ, इसलिए अगर तुम्हारे घमंड और दुश्मनी का यही हाल रहा, तो पल में सब कुछ फ़ना हो जाएगा और फिर न तुम रहोगे और न॑ यह तुम्हारा समाज, बेशक ये सब अल्लाह की नेमते हैं, बशर्ते कि इनके हासिल करने वाले उसका शुक्र अदा करें और उसके सामने सरे नियाज़ झुंकाएं और बेशक यही अज़ाब व लानत के सामान हैं, अगर इनका इस्तिक़बाल शेख़ी व गुरूर के साथ किया जाए। इसलिए यह समझना गलती है कि ऐश का हर सामान अल्लाह की खुश्नूदी का नत्तीजा है।’

समूद को यह हैरानी थी कि यह कैसे मुम्किन है कि हमीं में का एक इंसान अल्लाह का पैगम्बर बन जाए और वह अल्लाह का हुक्म सुनाने लगे। वे बड़े ताज्जुब से कहते –

“कि हमारी मौजूदगी में उस पर (खुदा की) नसीहत उतरती है।’ [साद ३८:८]

यानी अगर ऐसा होना ही था तो इसके अहल हम थे, न कि सालेह अलैहि सलाम और कभी अपनी क़ौम के कमज़ोर लोगों (जों कि मुसलमान हो गए थे) को खिताब करके कहते –

“क्‍या तुमको यकींन है कि बिला शुबहा सालेह अपने परवरदियार का रसूल है?’ [अल-अराफ़ ७:५९]

और मुसलमान जवाब देते –

“बेशक हम तो इसके लाये हुए पैगाम यर ईमान रखते है।’ [अल-अराफ़ ७:७५]

तब ये कौम के इंकार करने वाले (समुद क़ौम) गुस्से में कहते :

“बेशक हम को उस चीज़ का जिस पर तुम्हारा ईमान है, इंकार करते है।’ [अल-अराफ़ ७:७]

बहरहाल हज़रत सालेह अलैहि सलाम की मगरूर व सरकश क़ौम ने उनकी पैग़म्बराना दावत व नसीहत को मानने से इंकार किया और अल्लाह के निशान (मोजजे) का मुतालबा किया, तब सालेह ने अल्लाह के दरबार में दुआ की और कुबूलियत के बाद अपनी क़ौम से फ़रमाया कि तुम्हारा मतलूब निशान ऊंटनी की शक्ल में यहां मौजूद है। देखो, अगर तुमने इसको तकलीफ पहुंचायी तो फिर यही हलाकत का सामान साबित होगा और अल्लाह ने तुम्हारे और उसके दर्मियान पानी के बारी तय कर दी है। एक दिन तुम्हारा है और एक दिन इसका, इसलिए इसमें फ़र्क न आए।

क़ुआआन मजीद ने इसे “नाकतुल्लाह” (अल्लाह की ऊंटनी) कहा है, ताकि यह बात नज़रों में रहे कि यूं तो तमाम मख़लूक़ अल्लाह ही की मिल्कियत है, मगर समूद ने चूंकि उनको ख़ुदा की एक निशानी की शक्ल में तलब किया था, इसलिए उसकी मौजूदा ख़ुसूसिसत ने उसको “अल्लाह की निशानी” का लकब दिलाया, साथ ही उसको ‘लकुम आयातिही’ (तुम्हारे लिए निशानी) कहकर यह भी बताया कि यह निशानी अपने भीतर ख़ास अहमियत रखती है, लेकिन बदक़िस्मत कौम समूद ज़्यादा देर तक इसको बर्दाश्त न कर सकी और एक दिन साज़िश करके ऊंटनी को घायल कर डाला। हज़रत सालेह को जब यह मालूम हुआ तो आंखों पे आंसू लाकर फ़रमाने लगे, बदबख्त कौम ! आख़िर तुझसे सब्र न हो सका। अब अल्लाह के अज़ाब का इंतज़ार कर। तीन दिन के बाद न टलने वाला अज़ाब आएगा और तुम सबको हमेशा के लिए तहस-नहस कर दिया जाएगा।

समूद पर अज़ाब

समूद पर अजाब आने की निशानियां अगले सुबह से ही शुरू हो गई, यानी पहले दिन इन सबके चेहरे इस तरह पीले पड़ गए जैसा कि हर शुरूआती हालत में हो जाया करता है और दूसरे दिन सबके चेहरे लाल थे, गोया खौफ़ दहशत का यह दूसरा दर्जा था और तीसरे दिन इन सबके चेहरे स्याह थे और अँधेरा छाया हुआ था। यह खौफ व दहशत का वह तीसरा दर्जा है जिसके बाद मौत का दर्जा रह जाता है।

बहरहाल इन तीन दिनों के बाद वादा किया गया वक़्त आ पहुंचा और रात के वक़्त एक हैबतनाक आवाज ने हर आदमी को उसी हालत में हलाक  कर दिया, जिस हालत में वह था। कुरआन मजीद ने हलाक कर देने वाली आवाज़ को किसी जगह साईक़ा (कड़कदार बिजली) और किसी जगह रजफ़ा (जलजला डाल देने वाली चीज़), किसी जगह तागिया (दहशतनाक) और कहीं सैहा (चीख) फ़रमाया।

एक तरफ समूद पर यह अज़ाब आया और उनकी बस्तियों को तबाह व बर्बाद करके सरकशो की सरकशी और घमंडियों का अंजाम ज़ाहिर हुआ, जबकि दूसरी ओर हज़रत सालेह अलैहि सलाम और उनकी पैरवी करने वाले मुसलमानों को अल्लाह ने अपनी हिफ़ाज़त में ले लिया और उनको इस अज़ाब से महफ़ूज़ रखा।

कुछ इबरतें

अल्लाह की सुन्नत यही रही है (मगर अल्लाह की इस सुन्नत से नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहिस्सलाम की रिसालत का पैग़ाम अलग है। इसलिए कि आपने साफ़ कहा है कि मैंने अल्लाह से दुआ मांगी कि वह मेरी उम्मत (उम्मते दावत हो या उम्मते इजाबत) में अजाब मुसल्लत न फ़रमाए और अल्लाह तआला ने मेरी दुआ कुबूल फ़रमा ली।) कुरआन मजीद ने इसकी तस्दीक़ इस तरह की है –

“ऐ रसूल! इस हाल में कि आप उनमें मौजूद है अल्लाह तआला (इन काफिरों) पर अज़ाब मुसल्लत न करेगा।’ [अल-अंफ़ाल : 33]

लेकिन जो कौम अपने नबी से इस वायदे पर निशान तलब करे कि अगर उनका मतलूब निशान ज़ाहिर हो गया, तो ये ज़रूर ईमान लाएंगे, फिर दे ईमान न लाए तो उस कौम की हलाकत यकीनी हो जाती है। अल्लाह तआला जब तक कि वह तौबा न कर ले और अल्लाह के दीन को कुबूल न कर ले या अल्लाह के अजाब से सफ्हा-ए-हस्ती से मिटकर दुसरो के लिए इबरत का सबब न बन जाए। यह मोहलिक ग़लती और नफ़्स इंसान ख़ुशऐशी, रफ़ाहियत और दुन्यावी जाह व जलाल देखकर यह समझ बैठे है की जिस कौम या फर्द के पास यह सबकुछ मौजूद है वह जरूर अल्लाह तआला के साये में है और उनकी ख़ुशऐशी अल्लाह की ख़ुशनूदी की निशानी है।

हुद अलैहि सलाम और क़ौमे आद

 

हुद अलैहि सलाम और क़ौमे आद » Qasas ul Anbiya: Part 6

Hood Alaihis Salam: Qasas-ul-Ambiya Series in Hindi: Post 6

۞ बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम ۞

आद का ज़माना

आद का ज़माना लगभग दो हज़ार साल कब्ल मसीह माना जाता है और कुरआन मजीद में आद को ‘मिम बादी नूह’ कहकर नूह कौम के ख़लीफ़ों में गिना गया है, साथ ही उनको ‘आदे उला’ कहा है और आद के साथ इरम का लफ़्ज लगा हुआ है।

आद के रहने की जगह

आदे का मर्कज़ी मक़ाम अरज़े अहक़ाफ़ है। यह हज़र मौत के उत्तर में इस तरह वाक़े है कि इसके पूरब में ओमान और उत्तर में राबेअ अल-ख़ाली। मगर आज यहां रेत के टीलों के सिवा कुछ नहीं है।

आद का मजहब

आद बुत-परस्त थे और अपने पेशे और नूह की क़ौम की तरह सनमपरस्ती और बुततराशी में माहिर थे। हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (र.अ.) से एक असर मंक़ूल है। इसमें है कि इनके एक सनम का नाम समूद और एक का नाम हतार था।

हज़रत हूद अलैहि सलाम

आद अपनी ममलक्त की सतवत व जबरूत, जिस्मानी सूरत व गुरूर में ऐसे चमके कि उन्होंने एक अल्लाह को बिल्कुल भुला दिया और अपने हाथों
के बनाए हुए बुतों को अपना माबूद मानकर हर किस्म के शैतानी आमाल बेख़ौफ़ करने लगे, तब अल्लाह तआला ने उन्हीं में से एक पैग़म्बर हज़रत हूद को भेजा। हज़रत हूद अलैहि सलाम आद की सबसे ज्यादा इज़्ज़्तदार शाख़ा ‘खुलूद’ के एक फ़र्द (व्यक्ति) थे।

इस्लाम की तब्लीग

उन्होंने अपनी कौम को अल्लाह की तौहीद और उसकी इबादत की तरफ दावत दी और लोगों पर जुल्म व जौर करने से मना फ़रमाया। मगर आद ने एक न मानी। उनको सख्ती के साथ झुठलाया और ग़ुरूर और घमंड के साथ कहने लगे, हम में से ज़्यादा कौन है कुव्वत में आगे [हामीम सज्दा ४१]

आज दुनिया में हम से ज़्यादा शौकत व जबरूत का कौन मालिक है? मगर हज़रत हूृद अलैहि सलाम लगातार इस्लाम की तब्लीग़ में लगे रहे। वह अपनी कौम को अल्लाह के अज़ाब से डराते और गुरूर व सरकशी के नतीजों को बताकर नूह की क़ौम के वाक्रिए याद दिलाते और कभी इरशाद फ़रमातें:

“ऐ क्रौम! अपनी जिस्मानी ताक़त और हुकूमत के जबरदस्त होने पर घमण्ड न कर, बल्कि अल्लाह का शुक्र अदा कर कि उसने तुझको यह दौलत बख़्शी। नृह क़ौम की तबाही के बाद जमीन का तुझको मालिक बनाया, ख़ुशऐशी, फ़ारिगुलबाली और खुशहाली अता की, इसलिए उसकी नेमतो को न भूल और ख़ुद के गढ़े हुए बुतों की परस्तिश से बाज़ आ, जो ना नफ़ा पहुंचा सकते हैं और न दुख दे सकते हैं। मौत व ज़िंदगी, नफ़ा-नुक़्सान सब एक अल्लाह ही के हाथ में है। ऐ कौम के लोगो! माना कि तुम सरकशी और उसकी नाफ़रमानी में मुब्तला रहे हो, मगर आज भी अगर तौबा कर लो और बाज़ आ जाओ तो उसकी रहमत फैली हुई है और तौबा का दरवाज़ा बंद नहीं हुआ है। उससे मग्फ़िरत चाहों, वह बक्श देगा। उसकी तरफ़ रूजू हो जाओ, वह माफ़ कर देगा और माल व इज़्ज़त में सरफ़राजी बख्शेगा।

आद को हज़रत हूद अलैहि सलाम की ये नसीहतें बहुत गरां गुज़रती थीं और वे यह नहीं सह सकते थे कि उनके ख़्यालोँ, उनके अक्रीदों और उनके कामों, ग़रज यह कि उनके इरादों में कोई आदमी रुकावट पैदा करें, उनके लिए मेहरबान नसीहत करने वाला बनें, इसलिए अब उन्होंने यह रवैया अपनाया कि हज़रत हृद अलैहि सलाम का मज़ाक उड़ाया, उनको बेबकूफ़ समझा और उनकी मासूमियत भरी हक़ वाली सच्चाइयों की तमाम यकीनी दलीलों और मिसालों को झुठलाना शुरू कर दिया और कहने लगे-

“ऐ हुद! तू हमारे पास एक दलील भी न लाया और तेरे कहने पे हम अपने खुदाओं को छोड़ने वाले नहीं और न हम तुझ पर ईमान लाने वाले
है।” [हूद ११:३५]

“और हम इस ढोंग में आने वाले नहीं कि तुझकों ख़ुदा का रसूल मान लें और अपने ख़ुदाओं की इबादत छोड़कर यह यकींन कर लें कि वे ‘बड़े ख़ुदा’ के सामने हमारे सिफ़ारिशी नहीं होंगे।”

हज़रत हूद अलैहि सलाम ने उनसे कहा कि न मैं बेवकूफ़ हूं और न पागल, बिला शुबाह अल्लाह का रसूल और पैग़म्बर हूं। अल्लाह अपने बन्दों की हिदायत के लिए बेबकूफ़ को मुंतख़ब नहीं किया करता कि उसका नुक्सान उसके नफ़ा से बढ़ जाए और हिदायत की जगह गुमराही आ जाए। वह इस ज़ोरदार ख़िदमत के लिए अपने बन्दों में से ऐसे आदमी को चुनता है जो हर तरह से उसका अहल हो और हक़ की असल ख़िदमत को ख़ुशी के साथ अंजाम दे सके।

“और अल्लाह खूब जानने वाला है कि रिसालत के अपने मनसब को किस जगह रखे।” [अल-अनाम ६:१२४]

मगर क़ौम की सरकशी और मुख़ालफ़त बढ़ती रही और उनपर सूरज से ज्यादा रोशन दलीलों और नसीहतों का ज़रा भी असर न पड़ा और हज़रत हूद अलैहि सलाम को ज़लील करने और झुठलाने पर और ज़्यादा उतर आए और (अल-अयाज़बिल्लाह) मजनून और ख़ब्ती कहकर और ज़्यादा मज़ाक़ उड़ाने लगे और कहने लगे ‘ए हुद! जबसे तूने हमारे बुतों को बुरा कहना और हमको उनकी इबादत न करने पर उभारना शुरू किया है हम  देखते है के उस वक्त से तेरा हाल ख़राब हो गया है। और हमारे खुदाओं के बद्दुआ से तू पागल और मजनूंन हो गया है तो अब हम इसके अलावा तुझको और क्या समझे ?

उनकी इस गुस्ताखी भरी जुर्रत और हिम्मत से ये ख्याल हो चला था की अब कोई आदमी हुद अलैहि सलाम की तरफ ध्यान न देगा और उनकी बातों को तवज्जो से ना सुनेगा। हजरत हुद अलैहि सलाम ने यह सबकुछ निहायत सब्र और जब्त से सुना फफिर उनसे यूँ बोले –

“मैं अल्लाह की और तुम संबकों गवाह बनाकर सबसे पहले यह एलान करता हूं कि मैं इस अक़ीदे से बिल्कुल अलग हूं कि इन बूतों में न यह कुदरत है कि मुझकों या किसी को किसी किस्म की भी कोई बुराई पहुंचा सकते हैं, इसके बाद तुमकों और तुम्हारे इन झूठे माबूदों को चैलेंज करता हूं कि अगर इनमें ऐसी कुदरत है तो वे मुझको नुकसान पहुंचाने में जल्दी से कोई क़दम उठाएं। मैं अपने अल्लाह के फ़ज़्ल व करम से अक़्ल॑ रखने वाला और सूझ-बूझ रखने वाला हूं। सोचने-समझने का मालिक हूं और हिक्मत और दानाई का हामिल, मैं तो सिर्फ़ अपने अल्लाह पर ही भरोसा करता हूं, और उसी पर पूरा यकीन रखता हूं जिसके कब्ज़े व कुदरत में कायनात के तमाम जानदारों की परेशानियां हैं, जो ज़िंदगी और मौत का मालिक है। वह ज़रूर मेरी मदद करेगा और हर नुकसान पहुंचाने वाले के नुकसान से बचाए रखेगा।

आखिर हज़रत हूद अलैहि सलाम ने उसकी लगातार बगावत और सरकशी के ख़िलाफ़ यह ऐलान कर दिया कि ‘अगर कौमे आद का यही रवैया रहा और हक़ से पलटने और मुंह फेरने की रविश में उन्होंने कोई तब्दीली न की और मेरी नसीहतों को पूरे दिल से न सुना, तो मैं अगरचे अपनी डाली ज़िम्मेदारियों के लिए हर वक़्त चुस्त ओर हिम्मत रखने वाला हूं, मगर उनके लिए हलाकत यकीनी है। अल्लाह बहुत जल्द उनको हलाक कर देगा और दूसरी क़ौम को जमीन का मालिक बनाकर उनकी जगह क्रायम कर देगा और बिला शुबाह वे अल्लाह तआला को जर्रा बराबर भी नुक़सान नहीं पहुंचा सकते वह तो हर चीज़ पर कुदरत रखने वाला और हर चीज़ की हिफ़ाज़त करने वाला और निगहबान है। और पूरी कायनात उसकी कुदरत की मुट्ठी में है।’

ऐ क़ौम! अब भी समझ और अक्‍़ल व होश से काम ले नृह अलैहि सलाम की कौम के हालात से इबरत हासिल कर और अल्लाह के पैग़ाम के सामने सरें नियाज़ झुका दे वरना क़ज़ा व क़द्र का हाथ ज़ाहिर हो चुका है और बहुत क़रीब है वह ज़माना कि तेरा यह सारा ग़ुरूर व घमंड खाक में मिलने जाएगा और उस वक़्त शर्मिंदगी से भी कोई फ़ायदा न होगा।

हज़रत हूद अलैहि सलाम ने बार-बार उनको भी यह बावर कराया कि मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं, दोस्त हूं। तुमसे सोना-चांदी और तख्त व ताज की तलब नहीं करता हु, बल्कि तुम्हारी फलाह व नजात चाहता हु। मैं अल्लाह तआला के पैगाम के बारे में खियानत करने वाला नहीं बल्कि अमीन हूँ। वही करता हु जो मुझसे कहा जाता है। जो कुछ कहता हूँ कौम की सआदत और हाल व माल की भलाई के लिए कहता हूं, बल्कि दायमी व सरमदी नजात के लिए कहता हु।

तुमको अपनी ही क़ौम के एक इंसान पर अल्लाह के पैग़ाम नाज़िल होने से अचम्भा नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह पुराने ज़माने से अल्लाह की जारी व सारी सुन्नत है कि इंसानों की हिदायत व सआदत के लिए उन्हीं में से एक आदमी को चुन लेता और अपना रसूल बना कर उसको ख़िताब करता है और अपनी मर्ज़ी और नामर्ज़ी से उसको मारफ़्त अपने बन्दों को मुत्तला करता रहता है और फ़ितरत का तक़ाजा भी तो यही है कि किसी क्रौम की रुश्द व हिदायत के लिए ऐसे आदमी ही को चुना जाए, जो बोल-चाल में उन्हीं की तरह हो, उनके अख्लाक़ और आदतों का जानकार हो, उनकी ख़ुसूसी बातों से आशना और उन्हीं के साथ ज़िंदगी गुजरता रहा हो कि उसी से क़ौम मानूस हो सकती है और वही उसका सही हादी व मुश्फ़िक़ि बन सकता है।

आद ने जब यह सुना तो वे अजीब हैरत में पड़ गए। उनकी समझ में न आया कि एक अल्लाह की इबादत का मतलब क्‍या है? वे गम व गुस्सा में आ गए कि किस तरह हम बाप-दादा  को ‘अस्नाम परस्ती’ (मूर्तिपूजा) को छोड़ दें? यह तो हमारी और हमारे बाप दाद की सख्त तौहीन है। उनका गैज व गजब भड़क उठा की उनको काफ़िर और मुश्रिक क्यों कहा जाता है? जबकि वो बुतों को अल्लाह समान अपनी शफ़ाअत करनेवाला मानते है। उनके नजदीक हुद की बात मान लेने में उनके माबूदों और बुजुर्गों की तौहीन थी और उन्हें हक़ीर समझा जा रहा था, जिनको वो बड़े खुदा के दरबार में अपना वसीला और शफी मानते थे और इसी को इन तस्वीरों और मूर्तियों के लिए पूजते थे की वे खुश होकर हमारी शिफारिश करेंगे और अल्लाह के अजाब से  निजात दिलाएंगे। आखिर वे शोले की तरह भड़क उठे और हजरत हुद अलैहि सलाम से बिगड़ कर कहने लगे, तूने हमको अपने खुदा के अजाब की धमकी दी और हमको उस से यह कहकर डराया की मै तुम्हारे ऊपर बड़े दिन के अज़ाब के आने से डरता हूं (कि कहीं) तुम उसके हक़॒दार न ठहर जाओ” [अश-शोअरा २६:१३५]

तो ऐ हूद! अब हमसे तेरी रोज़-रोज़ की नसीहतें सुनी नहीं जातीं। हम ऐसी नसीहत करने वाले मेहरबान से बाज़ आए, अगर तू वाक़ई अपने क़ोल में सच्चा है तो वह अज़ाब जल्द ले आ कि हमारा-तेरा किस्सा साफ़ हो। “पस॒ ला तू हमारे पास उस चीज़ को, जिसका तू हमसे वायदा करता है, अगर तू वाक़ई सच्चों में से है।” [अल-आराफ़ ७:७०]

हज़रत हूद अलैहि सलाम ने जवाब दिया कि अगर मेरे ख़ुलूस और मेरी सच्चाई वाली नसीहतों का यही जवाब है तो “बिस्मिल्लाह” और तुमको अज़ाब का अगर इतना की शोक़ है, तो वह भी कुछ दूर नहीं।

“बिला शुबहा तुम्हारे पालनहार की ओर से तुम पर अज़ाब व ग़ज़ब आ पहुंचा।” [अल-आराफ़ ७:७१]

“क्या तुम मुझसे उन मनगढ़त नामों (बुतों) के बारे में झगड़ते हो, जिनको तुमने और तुम्हारे बाप-दादों ने गढ़ लिया है कि जिसके बारे में तुम्हारे पास ख़ुदा की कोई हुज्जत नहीं। पास अब तुम (अल्लाह के अज़ाब का) इंतजार करों। मैं भी तुम्हारे साथ इन्तिज़ार करता हूं। [अल-आराफ़ ७:७१]

हूद की क़ौम पर अज़ाब

आखिर अल्लाह का वादा आ पहुंचा और गैरते हक़ हरकत में आई और अल्लाह के अज़ाब ने सबसे ख़ुश्कसाली की शक्ल ईख्तियार की। आद सख्त घबराए हुए परेशान हुए और तंग दिखाई पड़ने लगे, तो हज़रत हूद अलैहि सलाम को हमदर्दी के जोश ने उकसाया और मायूसी के बाद फिर उनको एक बार समझाया कि हक़ का रास्ता इख़्तियार कर लो, मेरी नसीहतों पर इमांन ले आओ, यही निजात की राह है दुनिआ में भी और आख़िरत में भी वरना पछताओगे। लेकिन बदबख्त और बदनसीब क़ौम पर कोई असर न हुआ बल्कि दुश्मनी कई गुना ज़्यादा बढ़ गई, तब हौलानाक अजाब ने उनको आ घेरा। आठ दिन और सात रातें बराबर तेज़ व तुंद हवा के तुफ़ान उठे और उनको और उनकी आबादी को तह व बाला करके रख दिया। तनोमंद और हैकल इंसान जो अपनी जिस्मानी त़ाक़तों के घमंड में सरमस्त और सरकश बने हुए थे, इस तरह बेहिस व हरकत पड़े नज़र आते थे, जिस तरह आंधी से भारी-भरकम पेड़ बेजान होकर गिरता है।

गरज़ उनकी हस्ती को नेस्त व नाबूद कर दिया गया, ताकि आने वाली नस्‍लों के लिए इबरत बनें और दुनिया और आख़िरत की लानत और अजाब उन पर मुसल्लत कर दिया गया कि वे उसी के हक़दार थे। हज़रत हूद अलैहि सलाम और उनके मुख्लिस इस्लाम को मानने वाले साथी अल्लाह की रहमत्त और नेमत में अल्लाह के अज़ाब से महफूज़ रहे और सरकश कौम की सरकशी और बगावत से बचे रहे ।

यह है आदे ऊला की वह दास्तान जो अपने अंदर इबरत्त के सामान रखती है। इसमें अनगिनत नसीहतें पाई जाती हैं और अल्लाह तआला के हुक्मो की तामील और तक़्वां व तहारत की ज़िदंगी की तरफ़ दावत देती है। शरारत, सरकशी और अल्लाह के हुक्मों से बग़ावत के बुरे अंजाम से आगाह करती और वक़्ती ख़ुशऐशी पर घमंड करके नतीजे की बदबख्ती पर मजाक उड़ाने से डराती और बाज़ रखती है।

हुद अलैहि सलाम की वफ़ात

हजरत अली (र.अ.) से एक असर नक़ल किया जाता है के हजरत हुद अलैहि सलाम की कब्र हजर मौत में कसीफे अहमर (लाल टीला) पर है और उसके सरहाने जहॉ का पेड़ खड़ा है। दूसरी रिवायतों के मुकाबले में यही रिवायत सही और माकूल मालूम होती है की आद की बस्तियां हजर मौत के करीब थी और उनकी (आद की) तबाही के बाद करीब ही की बस्तियों में हजरत हुद अलैहि सलाम ने क़ियाम फ़रमाया होगा। और वही वफ़ात हो गयी होगी।

कुछ इबररतें

अल्लाह के नेक बन्दे जब किसी का भला चाहते और टेढ़ों की टेढ़ को सीधा करने के लिए नसीहत फ़रमाते, तो बुरों और जलीलों की कमीनगी, मज़ाक़ उड़ाने, फब्ती कसने, छोटा बनाए रखने की परवाह नहीं करते। दुखी और रंजीदा होकर या नाराज़ होकर भला चाहने और नसीहत करने को नहीं छोड़ते और इन तमाम ख़ुसूसियतों में नुमायां बात यह होती है कि वे अपनी इसी नसीहत और भला चाहने के लिए क़ौम से किसी नफ़ा की उम्मीद या ख्वाहिश ज़रा-सी नहीं रखते। उनकी ज़िंदगी बदला और एवज़ से पूरी तरह और बरतर होती है।

अपने इस्लाह चाहने वालों और नबियों और सच्चों के ख़िलाफ़ क़ोमों की बैर और दुश्मनी इसी एक अक़ीदे पर टिक रहीं है कि हमारे बाप-दादा की रीति व रस्म और उनकी ख़ुद की गढ़ी हुई मूर्तियों के ख़िलाफ़ क्यों कुछ कहा जाता है? ये बातें क़ौमों की ज़िंदगी के लिए हमेशा तबाही मचाने वाली और उनकी फलाह व अबदी सआदत के लिए हलाक करने वाली हैं।

तब्लीग व हक़ के पैग़ाम के रास्ते में बदी का बदला नेकी से दिया जाए और कडुवाहट का जवाब मीठे बोल से पूरा किया जाए। (अलबत्तां तब्लीग करने वाले) अपनी बदकिरदारी और लगातार सरकशी पर अल्लाह तआला के बनाए हुए क़ानून जज़ा-ए-अमल” या ‘पादाशे अमल” को ज़रूर याद दिलाएं और आने वाले बुरे अंजाम पर यक़ीनन तंबीह करें और यह सच्चाई बार-बार सामने लाएं कि जब कोई क़ौम इज्तिमाई सरकशी, ज़ुल्म ओर बगावत पे तैयार हो जाती है और उस पर बराबर इसरार करती रहती है, तो फिर अल्लाए तआला का गजब उसको सफ्हा-ए-आलम से मिटा देता है और उसकी जगह दूसरी क़ौम ले लेती है।

हज़रत हृद अलैहि सलाम और आद क़ौम का ज़िक्र कुरआन में सूरः आराफ़, हृद और शुअरा में आया है जबकि आद क़ौम का जिक्र आराफ़, हूद, मोमिनून, शुअरा, फुस्स्लित, अहक्राफ़, अज्जारियात, अल-क़मर और अल-्हाक़्क़ा में हुआ है।

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम

 



हज़रत इदरीस अलैहि सलाम » Qasas ul Anbiya: Part 5

Idrees Alaihis Salam: Qasas-ul-Ambiya Series in Hindi: Post 5

۞ बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम ۞

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम का ज़िक्र कुरआन में सिर्फ़ दो जगह आया है,  सूरः मरयम में और सूर: अंबिया में।

और याद करो कुरआन में इदरीस को, बिला शुबहा वह सच्चे नबी थे और बुलन्द किया है हमने उनका मुकाम। [मरयम १९:५६]

और इस्माईल और इदरीस और ज़ुलकिफ़्ल, इनमें से हर एक था सब्र करने वाला। [अबिया २१:८५]

नाम-नसंब और ज़माना

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम के नाम-नसब और जमाने के बारे में तारीख़ लिखने वालों का सख्त इख़्तेलाफ है और तमाम इख्तिलाफ़ी वजहों को सामने रखने के बाद भी कोई आख़िरी या तरजीह देने वाली राय क़ायम नहीं की जा सकती। वजह यह है कि कुरआन करीम ने तो रुशद व हिदायत के अपने मकसद के पेशे नज़र, तारीख़ी बहस से जुदा होकर सिर्फ़ उनकी नुबूवत के रुतबे की बुलन्दी और उनकी ऊंची सिफ़तो का जिक्र किया है ओर इसी तरह हदीस की रिवायतें भी इससे आगे नहीं जातीं। इसलिए इस सिलसिले में जो कुछ भी हैं, वे इसराईली रिवायतें हैं और वे भी आपसी टकराव और इख़्तेलाफ़ से भरी हुई हैं। (इसीलिए थोड़े से लिखने के पेशेनज़र इन दूर-दराज़ से लाई गई बहसों से बचने की कोशिश की जा रही है)

एक जमाअत का यह ख्याल है कि हज़रत इदरीस अलैहि सलाम बाबिल में पैदा हुए और वहीं पले-वढ़े। उम्र के शुरूआती दिनों में उन्होंने हज़रत शीस बिन आदम अलैहि सलाम से इल्म हासिल किया। बहरहाल जब इदरीस अलैहि सलाम ख़ुद से सोचने-समझने वी उम्र को पहुंचे लो अल्लाह ने उनको नुवूबत से सरफ़राज़ फ़रमाया तब उन्हाने शरीरों (बदमाशों) और फ़सादियों के लिए राहे हिदायत की तब्लीग शुरू की, पर फ़सादियों ने उनकी एक बात न सुनी और हज़रत आदम व शीश अलैहि सलाम की शरीयत के मुखालिफ ही रहे, अलबत्ता एक छोटी-सी जमाअत ज़रूर मुसुलमान हो गई।

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम ने जब यह रंग देखा तो वहां से हिजरत का इरादा किया और अपने मानने वालों को हिजरत कर जाने के लिए कहा।इदरीस अलैहि सलाम की पैरवी करने वालों ने जब यह सुना तो उनको वतन का छोड़ना बहुत गसं गुज़रा और कहने लगे कि बाबिल जैसा वतन हमको कहां नसीब हो सकता है? हजरत इदरीस अलैहि सलाम ने तसल्ली देते हुए फ़रमाया कि अगर तुम यह तकलीफ अल्लाह के रास्ते में उठाते हो, तो उसकी रहमत बहुत फैली हुई है, उसका अच्छा बदला ज़रूर देगा, पस हिम्मत न हारों और अल्लाह के हुक्म के आगे सरे नियाज़ झुका दो।

मुसलमानों की रज़ामंदी के बाद हज़रत इदरीस और उनकी जमाअत मिस्र की तरफ़ हिजरत कर गई और नील के किनारे एक अच्छी जगह चुनकर के सकूनत अपना ली। हज़रत इदरीस अलैहि सलाम और उनकी पैरवी करने वाली जमाअत ने पैगामे इलाही और भलाई का हुक्म देने और बुराई से रोकने वाले का फर्ज अंजाम देना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि उनके ज़माने में बहत्तर ७२ जुबानें बोली जाती थीं और अल्लाह की अता व बख्शीश से वह वक़्त की तमाम जुबानों को जानते थे और हर एक जमाअत को उसकी ज़बान में तब्लीग़ फ़रमाया करते थे। एक रिवायत के एतबार से हजरत इदरीस अलैहि सलाम पहले आदमी हैं जिन्होंने कलम क इस्तेमाल किया।

हज़रत इदरीस की ख़ास बातें

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम ने दीने इलाही के पैग़ाम के अलावा तमद्दुनी रियासत और शहरी ज़िंदगी, तमद्दुनी तौर-तरीक़ों की तालीम व तलक़ीन की और उनके ट्रेंड तालिबे इल्मों ने कम व बेश दो सौ बस्तियां आबाद कीं। हज़रत इृदरीस अलैहि सलाम ने इन तलबा को दूसरे इल्मों की भी तालीम की, जिसमें इल्मे हिक्मत भी शामिल हैं। हज़रत इदरीस अलैहि सलाम पहली हस्ती हैं जिन्होंने हिक्मत के इल्म की शुरवात की, इसलिए कि अल्लाह तआला ने उनको अफ़लाक और उनकी तर्कीब और उनके जमा होने और अलग होने के नुक्तों और उनके आपसी कशिश के राज़ों की तालीम दी और उनको अदद ब हिसाब के इल्म का आलिम बनाया और अगर ख़ुदा के उस पैगम्बर के ज़रिए से इल्म सामने न आते, तो इन्सानी तबीयतों की वहां तक पहुंच मुश्किल थी। उन्होंने अलग-अलग ज़ातों और गिरोहों के लिए उनके मुनासिबे हाल क़ायदे क़ानून मुक़र्रर किए और पूरी दुनिया को चार हिस्सों में बांट कर हर चौथाई के लिए एक हाकिम मुकर्रर किया जो ज़मीन के उस हिस्से की सियासत और बादशाही का ज़िम्मेदार करार पाया और इन चार्रो के लिए ज़रूरी क़रार दिया कि तमाम क़ानूनों से बढ़-चढ़कर शरीयत का वह क़ानून रहेगा, जिसकी तालीम अल्लाह की वह्य के ज़रिए मैंने तुमको दी है।

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम की तालीम का खुलासा

अल्लाह की हस्ती और उसकी तौहीद पर ईमान लाना सिर्फ कायनात पैदा करने वाले की परस्तिश करना, आख़िरत के अज़ाब से बचाने के लिए भले अमलों को ढाल बनाना, दुनिया से बे-नियाज़ी, तमाम मामलों में अदल व इंसाफ़ को सामने रखना, मुंकर्रर किए हुए तरीकों पर अल्लाह की इबादत करना, अय्यामे बीज के रोज़े रखना, इस्लाम के दूश्मनों से जिहाद करना, ज़कात अदा करना, पाकी-सफ़ाई के साथ रहना, ख़ास तौर से जनाबत, कुत्ते और सूअर से बचना, हर नशीली चीज़ों से परहेज़ करना।

बाद में आने वाले नंबियों के बारे में बशारत

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम ने अपनी उम्मत को यह भी बताया कि मेरी तरह इस दुनिया की दीनी व दुनियावी इस्लाह के लिए बहुत से नबी तशरीफ़ लाएंगे और उनकी नुमायां ख़ास बातें ये होंगी।

वे हर एक बुरी बात से दूर और पाक होंगे। तारीफ़ के काबिल और फ़ज़ाइल में कामिल होंगे। ज़मीन व आसमान के हालात को और उन मामलों को कि जिनमें कायनात के लिए शिफ़ा है या मरज, वहीह इलाही के ज़रिए इस तरह जानते होंगे कि कोई मांगने वाला भूखा-प्यासा न रहेगा। वे दुआओं को देने वाले होंगे। उनके मज़हब की दावत का खुलासा कायनात की इस्लाह होगा।

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम की ज़मीनी खिलाफत

जब हज़रत इदरीस अलैहि सलाम अल्लाह की ज़मीन के मालिक बना दिए गए, तो उन्होंने इल्म व अमल के एतबार से अल्लाह की मख्लूख को तीन तब्को में बांट दिया। काहिन, बादशाह, रियाया (प्रजा) और तर्तीब के एतबार से उनके दर्जे तय किए। ‘काहिन’ सबसे पहला और ऊंचा दर्जा करार पाया, इसलिए कि वह अल्लाह तआला के सामने अपने नफ़्स के अलावा बादशाह और रियाया के मामलों में भी जवाबदेह है। ‘बादशाह’ का दूसरा दर्जा रखा गया इसलिए कि वह नफ़्स और राज्य के मामलों के बारे में जवाबदेह है और ‘रियाया’ सिर्फ़ अपने नफ़्स के लिए जवाबदेह है, इसलिए वह तीसरे तबके में शामिल है लेकिन ये तबके ज़िम्मेदारियों के एतबार से थे, नस्ल व ख़ानदान के इख़्तियारो के एतबार से नहीं। हजरत इदरीस अलैहि सलाम ‘अल्लाह तक जाने’ तक शरीयत और सियासत के इन्हीं कानूनों की तब्लीग फरमाते रहे।

हज़रत इदरीस अलैहि सलाम की नसीहतें

हजरत इदरीस अलैहि सलाम की बहुत-सी नसीहतें और आदाब और अखलाख के जुमले मशहूर हैं, जो अलग-अलग जुबानों में कहावत की शक्ल में इस्तमाल किये जाते है। उनमें से कुछ नीचे दिए जाते है:

१. अल्लाह की बेपनाह नेमतों का शुक्रिया इंसानी ताक़त से बाहर है।

२. दुनिया की भलाई ‘हसरत’ है और बुराई ‘नदामत’।

३. अल्लाह की याद और अमले सालेह के लिए ख़ुलूसे नीयत शर्त है।

४. न झूठी क़स्में खाओ, न अल्लाह तआला के नाम को कस्मो के लिए तख्ता-ए-मश्क़ बनाओ और न झूठों को कस्मे खानें पर आमादा करो, क्योंकि ऐसा करने से तुम भी गुनाह में शरीक हो जाओगे।

५. अपने बादशाहों की (जो कि पैग़म्बर की तरफ़ से शरीअत के हुक्मों के नाफ़िज़ करने के लिए मुकरर किए जाते हैं) इताअत करो और अपने बड़ों के सामने पस्त रहों और हर वक़्त अल्लाह की तारीफ़ में अपनी जुबान को तर रखो।

६. हिकमत रूह की ज़िंदगी है।

७. दूसरों की ख़ुश ऐशी पर हसंद न करो, इसलिए कि उनकी यह मस्रूर ज़िंदगी कुछ दिनों की है।

नोट: कुछ तहक़ीक़ करने वालों और तज़्किरा लिखने वालों ने हज़रत इदरीस अलैहि सलाम और यूनानी फ़र्ज़ी अफ़्सानवी (Greek Mythology) के (Hermes) हरमज में मुताबकत पैदा करने की कोशिश की है, जो सही नहीं है। हरमज़ (Hermes) को उन फ़र्जी अफ़्सानों में हिक्मत व फ़साहत का देवता कहा जाता है। रूमी उसको ‘अतारद’ कहते हैं।

कायनात की पैदाइश और पहला इंसान » Qasas ul Anbiya: Part 1

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